Durga Chalisa: श्री दुर्गा चालीसा
Durga Chalisa मां दुर्गा के भक्तों के लिए प्रस्तुत हैं पावन श्री दुर्गा चालीसा। जिसके नित्य पाठ से माता दुर्गा आपके सारे दुखों को हरण करके अपनी असीम कृपा आप पर बरसाएंगी…।
सुख शांति व समृद्धि के उद्देश्य तथा समाज में फैल रही सामाजिक बुराइयों को नष्ट करने में फलदायी है दुर्गा चालीसा।
आध्यात्मिक महत्व
1. देवी दुर्गा की कृपा: Durga Chalisa का पाठ करने से देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है, जो हमारे जीवन में सुख, समृद्धि और शांति लाती है।
2. आध्यात्मिक शक्ति: Durga Chalisa में वर्णित मंत्र और श्लोक हमारे आध्यात्मिक जीवन को मजबूत बनाने में मदद करते हैं।
3. भक्ति और श्रद्धा: Durga Chalisa का पाठ करने से हमारे अंदर देवी दुर्गा के प्रति भक्ति और श्रद्धा बढ़ती है।
मानसिक और भावनात्मक महत्व
1. मानसिक शांति: Durga Chalisa का पाठ करने से हमारे मन को शांति और स्थिरता मिलती है।
2. भावनात्मक संतुलन: Durga Chalisa में वर्णित मंत्र और श्लोक हमारे भावनात्मक जीवन को संतुलित बनाने में मदद करते हैं।
3. आत्मविश्वास: Durga Chalisa का पाठ करने से हमारे अंदर आत्मविश्वास और साहस बढ़ता है।
व्यावहारिक महत्व
1. रक्षा और सुरक्षा: Durga Chalisa का पाठ करने से हमारे जीवन में रक्षा और सुरक्षा की भावना बढ़ती है।
2. स्वास्थ्य और समृद्धि: Durga Chalisa में वर्णित मंत्र और श्लोक हमारे स्वास्थ्य और समृद्धि को बढ़ावा देने में मदद करते हैं।
3. सुख और शांति: Durga Chalisa का पाठ करने से हमारे जीवन में सुख और शांति की भावना बढ़ती है।
Durga Chalisa के पाठ को शुरू करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण नियमों का ध्यान रखना आवश्यक है। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण नियम दिए गए हैं:
- पाठ के लिए तैयारी
1. शुद्धता और पवित्रता: पाठ करने से पहले अपने शरीर और मन को शुद्ध और पवित्र करें। इसके लिए आप स्नान करें, पवित्र वस्त्र पहनें और अपने मन को शांत करें।
2. एकांत और शांति: एकांत और शांति से भरे स्थान पर पाठ करें। इससे आपको अपना ध्यान और एकाग्रता बनाए रखने में मदद मिलेगी।
3. मां दुर्गा की पूजा: पाठ करने से पहले मां दुर्गा की पूजा करें और उन्हें प्रसन्न करने के लिए फूल, फल और अन्य चीजें चढ़ाएं।
- पाठ के दौरान
1. ध्यान और एकाग्रता: पाठ करते समय अपना ध्यान और एकाग्रता बनाए रखें। अपने मन को शांत रखें और पाठ पर अपना ध्यान केंद्रित करें।
2. भावना और श्रद्धा: पाठ करते समय अपने मन में भावना और श्रद्धा रखें। मां दुर्गा के प्रति अपनी भावना और श्रद्धा को व्यक्त करें।
3. स्पष्ट और धीमी गति से पाठ करें: पाठ करते समय अपनी आवाज को स्पष्ट और धीमी गति से रखें। इससे आपको अपना ध्यान और एकाग्रता बनाए रखने में मदद मिलेगी।
- पाठ के बाद
1. मां दुर्गा को धन्यवाद दें: पाठ करने के बाद मां दुर्गा को धन्यवाद दें और उन्हें प्रसन्न करने के लिए फूल, फल और अन्य चीजें चढ़ाएं।
2. अपने जीवन में सुधार करें: पाठ करने के बाद अपने जीवन में सुधार करें और मां दुर्गा की शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारें। अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रयास करें।
Durga Chalisa: श्री दुर्गा चालीसा
नमो-नमो दुर्गे सुख करनी I
नमो-नमो अम्बे दुःख हरनी II
निरंकार है ज्योति तुम्हारी I
तिहुँ लोक फैली उजियारी II
शशि ललाट मुख महाविशाला I
नेत्र लाल भृकुटि विकराला II
रूप मातु को अधिक सुहावे I
दरश करत जन अति सुख पावे II
तुम संसार शक्ति लै कीना I
पालन हेतु अन्न धन दीना II
अन्नपूर्णा हुई जग पाला I
तुम ही आदि सुन्दरी बाला II
प्रलयकाल सब नाशन हारी I
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी II
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें I
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें II
रूप सरस्वती को तुम धारा I
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा II
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा I
परगट भई फाड़कर खम्बा II
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो I
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो II
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं I
श्री नारायण अंग समाहीं II
क्षीरसिन्धु में करत विलासा I
दयासिन्धु दीजै मन आसा II
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी I
महिमा अमित न जात बखानी II
मातंगी धूमावति माता I
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता II
श्री भैरव तारा जग तारिणी I
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी II
केहरि वाहन सोह भवानी I
लांगुर वीर चलत अगवानी II
कर में खप्पर खड्ग विराजै I
जाको देख काल डर भाजै II
सोहै कर में अस्त्र त्रिशूला I
जाते उठत शत्रु हिय शूला II
नगरकोट में तुम्हीं विराजत I
तिहुंलोक में डंका बाजत II
शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे I
रक्तबीज शंखन संहारे II
महिषासुर नृप अति अभिमानी I
जेहि अघ भार मही अकुलानी II
रूप कराल कालिका धारा I
सेन सहित तुम तिहि संहारा II
परी भीड़ संतन पर जब-जब I
भई सहाय मातु तुम तब-तब II
अमरपुरी अरु बासव लोका I
तब महिमा सब कहें अशोका II
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी I
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी II
प्रेम भक्ति से जो यश गावें I
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें II
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई I
जन्म-मरण ते सो छुटि जाई II
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी I
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी II
शंकर आचारज तप कीनो I
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो II
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को I
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको II
शक्ति रूप का मरम न पायो I
शक्ति गई तब मन पछतायो II
शरणागत हुई कीर्ति बखानी I
जय-जय-जय जगदम्ब भवानी II
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा I
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा II
मोको मातु कष्ट अति घेरो I
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो II
आशा तृष्णा निपट सतावें I
रिपू मुरख मौही अति डरपावे II
शत्रु नाश कीजै महारानी I
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी II
करो कृपा हे मातु दयाला I
ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला II
जब लगि जिऊं दया फल पाऊँ I
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ II
दुर्गा चालीसा जो गावै I
सब सुख भोग परमपद पावै II
देवीदास शरण निज जानी I
करहु कृपा जगदम्ब भवानी II
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